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आस्था पारंपरिक होती है, फिर भी वह चलती रहती है। ब्रिटिश राजशाही में चलने वाला धर्म और उसके नियम रूढ़िवादियों के बीच लोकप्रिय हैं, क्योंकि वे एक संरचित और संस्थागत परंपराएं लेकर चलते हैं। ये ऐसी परंपराएं हैं, जो नवीनतम सामाजिक ताने-बाने से प्रभावित नहीं होती हैं। लेकिन अधिकांश लोगों के लिए धर्म और उनके नियम व्यापक परिदृश्य में देखे जाने वाली प्रवृतियां हैं। ये सामाजिक संदर्भ के साथ बदलती रहती हैं।
हाल ही में विश्व के सबसे बड़े धार्मिक संस्थानों में से एक माने जाने वाले कैथोलिक चर्च ने आधिकारिक तौर पर समलिंगी जोड़ों को मान्यता दे दी है। लेकिन इनके विवाह को स्वीकृति नहीं दी गई है। ऐसा करके चर्च ने कैथोलिक धर्म को और अधिक समावेशी बना दिया है। ऐसा सुधार तब सबसे अधिक प्रभावी होता है, जब उसे किसी संस्था के भीतर से शुरू किया जाए। अन्यथा यह धर्मान्तरित व्यक्ति के लिए उपदेश मात्र रह जाता है।
स्पष्टतः हर एक कैथोलिक इससे प्रसन्न नहीं होगा, क्योंकि यह बदलाव उनके लिए बहुत ज्यादा है। इसी प्रकार से प्रत्येक उदारवादी इसे बहुत कम की दृष्टि से देखेगा। ऐसा होना मानव की प्रकृति है, जो आस्था, पूजा और विचारधारा की आधारशिला पर बनी है, और उसी पर चलती है।
धर्म का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है। अतः धर्मनिरपेक्षता की भावना रखने वाले लोकप्रिय धार्मिक नेता बहुत बड़े-बड़े सामाजिक सुधार कर सकते हैं। जैसे, हिंदू धर्म में सती प्रथा का उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह की शुरूआत की गई थी। उस समय भले ही इन सुधारों को निंदनीय माना गया था, परंतु, आज ये अन्य परंपराओं की तरह ही हैं। ऐसे ही, समलिंगी जोड़ों को मान्यता को एक दिन कैथोलिक धर्म में परंपरा की तरह ही देखा जाएगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 21 दिसंबर, 2023
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