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एक कामकाजी लोकतंत्र की पहचान विचार-विमर्श है। इसमें निर्वाचित प्रतिनिधि सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर बहस करते हैं, और नागरिकों को प्रभावित करने वाले मुद्दों के समाधान तलाशते हैं। लेकिन हाल ही में हुए दो मामले ऐसे रहें, जिनसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पतन का संकेत मिलता है।
1) कुछ भारतीय नागरिको का संसद में हंगामा करने का नाटकीय प्रयासय जो कि वास्तव में बेरोजगारी की समस्या पर सरकार का ध्यान खींचने के लिए किया गया था।
2) कुल 146 सांसदों का निलंबन। विपक्षी सांसदों ने कुछ मुद्दों पर सदन में वक्तव्य और बहस की मांग की थी।
भारतीय संसद में इस प्रकार की कार्रवाईयों से विश्व की लोकतांत्रिक रिर्पोटों में भारत की छवि को चुनावी निरंकुशता के रूप में चित्रित किया गया है।
इससे भी बदतर स्थिति यह है कि संसद में धुएं वाले कैनिस्टर फेंकने, और नारे लगाने वाले प्रदर्शनकारियों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसा कठोर कानून लगााया गया है। इन सबको देखते हुए अमेरिका के नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता का आकलन करने वाले फ्रीडम हाउस ने भारत को ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ घोषित कर दिया है।
सरकार के हाल के इन कदमों से लोकतंत्र की स्थिति खराब होती जा रही है। यह भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 दिसंबर, 2023
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