राज्यपाल के अधिकार से जुड़ा एक महत्वपूर्ण निर्णय

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नवंबर, 2023 को भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। यह निर्णय पंजाब राज्य बनाम पंजाब के राजयपाल के प्रधान या प्रिंसिपल सचिव के मामले में दिया गया है। इस पर कुछ बिंदु-

  • यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 200 के संबंध में दिया गया है।
  • इस अनुच्छेद के पहले प्रावधान की नई व्याख्या करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि राज्यपाल, विधेयक के समग्र या उसके कुछ प्रावधान पर पुनर्विचार के अनुरोध के साथ विधानसभा को वापस भेज सकता है।
  • अगर सदन पुनर्विचार के बाद संशोधन करके या बिना संशोधन के विधेयक को पारित कर देता है, तो राज्यपाल उस विधेयक पर अपनी सहमति नहीं रोक सकते हैं।

इस निर्णय से कानून बनाने की विधायिका की शक्ति की रक्षा की गई है।

  • निर्णय में यह भी कहा गया है कि विधेयकों पर निर्णय लेने मे राज्यपाल अधिक देर नहीं कर सकते हैं।

राष्ट्रपति के विचार हेतु भेजे जाने वाले विधेयकों पर –

  • अभी भी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसका उपयोग करके राज्यपाल विधायिका के कानून बनाने की प्रक्रिया को विफल कर सकते हैं। कुछ प्रकार के विधयकों को राज्यपाल राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकते हैं।
  • अनुच्छेद 200 के दूसरे प्रावधान में इस प्रकार के विधेयकों का उल्लेख है। ये विधेयक उच्च न्यायालय की संवैधानिक रूप से डिजाइन की गई शक्तियों को खतरे में डालने से संबंधित हो सकते हैं।
  • राष्ट्रपति के पास विचार करने के लिए भेजने का अर्थ है कि केंद्र सरकार द्वारा विचार करना। इसका अर्थ कि गृह मंत्रालय ऐसे विधयकों के भाग्य का फैसला करेंगे।
  • संविधान में बहुत ही सीमित श्रेणी के विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजे जाने का उल्लेख है। बाकी विधेयकों का भविष्य राज्यपाल के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है। केरल के राज्यपाल ने इसी अधिकार का लाभ लेते हुए आठ में से सात विधेयक राष्ट्रपति के पास भेज दिए थे।
  • राज्यपाल को एक निश्चित श्रेणी के विधेयक के अलावा अन्य विधेयकों को अपने विवेकाधिकार से राष्ट्रपति के पास भेजना चाहिए या नहीं, इस पर संविधान मौन है। दो स्थानों पर विधेयकों को आरक्षित रखने का अप्रत्यक्ष संदर्भ है। अनुच्छेद 213 और अनुच्छेद 254 में ऐसे संदर्भ मिलते हैं। इनकी निश्चित व्याख्या के लिए न्यायालय की प्रतीक्षा की जानी चाहिए।

कुल मिलाकर सरकार के किसी भी काम के लिए राज्यपाल को व्यक्तिगत तौर पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसी प्रकार, किसी कानून की वैधता की जाँच का अधिकार राज्यपाल या राष्ट्रपति को नहीं, बल्कि न्यायालय को है। उसे वैसा ही बनाए रखा जाना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित पी.डी.टी. आचार्य के लेख पर आधारित। 19 दिसंबर, 2023

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