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भारत में शिक्षा के सामान्यतः तीन स्तर माने जाते हैं – प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा। शिक्षाविदों का मानना है कि 15-16 आयु वर्ग यानि माध्यमिक स्तर की शिक्षा में स्कूल छोड़ने का खतरा सबसे अधिक होता है। इसलिए, भारत में दसवीं कक्षा और उसके बाद यानि उच्चतर माध्यमिक में ड्रॉपआउट अनुपात को एक महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता है। हाल के उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के आंकड़ों से ड्रॉपआउट की कम होती संख्या एक सकारात्मक रुझान दिखाती है। कुछ बिंदु –
- दसवीं कक्षा में चार साल के ड्रॉपआउट के अनुपात में उल्लेखनीय गिरावट आई है। 2018-19 में राष्ट्रीय ड्रॉपआउट अनुपात, जो 28.4 था, 2021-22 में गिरकर 20.6 हो गया है।
- कुछ राज्यों में ड्रॉपआउट अनुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक था। वह भी 2021-22 में कुछ नीचे आया है।
- त्रिपुरा ने सबसे शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है। 2020-21 में यहाँ ड्रॉपआउट अनुपात 26.9 था। यह 2021-22 में गिरकर 3.8 रह गया। मध्यप्रदेश, असम और गुजरात में भी ऐसा ही पैटर्न रहा है।
शिक्षा की प्राप्ति की अवधि का सीधा संबंध नौकरियों की उपलब्धता से है। रोजगार के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार इसके लिए मजबूत प्रोत्साहन नहीं दे पा रही है। बेरोजगारीदर अधिक शिक्षित लोगों में अधिक है। 2022-23 में कुल बेरोजगारी दर 3.2% थी। माध्यमिक स्कूली शिक्षा प्राप्त लोगों में यह 7.3% थी। इसलिए अगर सरकार अधिक बच्चों को माध्यमिक शिक्षा में रखना चाहती है, तो नौकरी पाने की उनकी संभावनाओं में सुधार करना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 21 दिसंबर, 2023
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