अमेरिका द्वारा जिस तेजी से अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाया गया उसने बाइडेन सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि अमेरिका ने इससे पहले एक बार और एक देश में अपने कदम पीछे किए थे। यह युद्ध था वियतनाम। दुनिया में कई देशों के साथ युद्ध लड़ने वाला अमेरिका आज वियतनाम युद्ध के दागों को साफ करने की कोशिश करता है। अफगानिस्तान की तरह विय़तनाम के लिए भी लिखित इतिहास अमेरिका पर ही सवाल खड़ा करता रहेगा। करीब दो दशकों तक चले इस युद्ध में अमेरिका ने अपने कदम पीछे कर लिए थे।
इस युद्ध के इतिहास को जानने से पहले कुछ बातों को जानना जरूरी है, दरअसल भूतकाल में वियतनाम नाम का कोई देश ही नहीं होता था। 1941 तक यह देश फ्रेंच इंडोचाइन नाम से जाना जाता था। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान ने इस इलाके पर हमला करते हुए इसे फ्रांस से छीन लिया था लेकिन जब वह युद्ध हार गए तो उन्हें इस इलाके का समर्पण करना पड़ा। जापान ने इस इलाके को दो अलग-अलग सेनाओं को सौंप दिया, जिसमें ब्रिटेन से लगने वाले दक्षिणी इलाके को फ्रांस और उत्तरी इलाके को चीन के सामने समर्पण कर दिया।
यहां से कहानी ने अलग मोड़ ले लिया। फ्रांस ने अपने हिस्से को वापस सौंपने के बजाय अपने शासक को वहां बिठा दिया, जबकि चीन ने इसे वहां की एक राजनीतिक दल की अगुवाई कर रहे हो ची मिन्ह के हाथों में दे दिया। हो ची मिन्ह को मिले क्षेत्र पर अधिकार जमाने के लिए जब फ्रांस पहुंची तो वहां युद्ध हो गया। 1946 से शुरू हुआ यह युद्ध 1954 तक चला, इसे फर्स्ट इंडोचाइना वॉर का नाम दिया गया।
इस युद्ध में वियतनाम ने पूरी दुनिया के सामने अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हुए फ्रांस को पीछे ढकेल दिया। जिसके बाद जिनेवा में एक शांति समझौता हुआ और तीन देशों को आजादी दे दी गई। इनके नाम थे लाओस, कंबोडिया और वियतनाम। इतिहास के जानकार मानते हैं कि यहां पश्चिमी ताकतों ने एक साजिश रची, जिसके तहत वियतनाम को दो भागों में विभाजित किया गया औऱ यह शर्त रखी गई कि यहां पर चुनाव होंगे और फिर दोनों का विलय कर दिया जाएगा। यहां कुछ उलटफेर ऐसे हुए कि साउथ वियतनाम में आंतरिक विरोध की स्थिति पैदा हो गई जिसे नॉर्थ वियतनाम बाहर से समर्थन दे रहा था।
इसी दौरान अमेरिका की एंट्री हुई। जब नॉर्थ वियतनाम, साउथ वियतनाम पर हमला कर रहा था तो यूएस आर्मी साउथ वियतनाम का सपोर्ट के लिए पहुंच गई। दरअसल अमेरिका साउथ वियतनाम की मदद इसलिए कर रहा था क्योंकि उसे डर था कि वियतनाम से कम्युनिशम की हवा दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी फैल जाएगी। ऐसे में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने शुरुआती दौर में गुपचुप तरीके से अपनी तैयारी शुरू की। उन्होंने अपने सैनिक न भेजकर एडवाइजर भेजने की शुरुआत कर दी। आगे उनकी क्या योजना थी, इसकी किसी को जानकारी नहीं, क्योंकि इसी दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
केनेडी के बाद अमेरिका की सत्ता लिंडन बी जॉनसन के हाथों में आ गई। यहां से युद्ध ने रफ्तार पकड़ी और उत्तर कोरिया पर एक हमले की साजिश रचते हुए नॉर्थ कोरिया पर बमबारी शुरू कर दी। अमेरिकी हेलिकॉप्टरों द्वारा वियतनाम के जंगलों को जलाया जाने लगा, क्योंकि उत्तरी वियतनाम के सैनिक गुरिल्ला तकनीक के तहत पेड़ों में छिपकर युद्ध किया करते थे। गांव के गांव जलाए जाने लगे, इस बीच उत्तरी वियतनाम ने अपना नेटवर्क पेडो़ं से हटाकर जमीन के अंदर तैयार करना शुरू कर दिया। यह नेटवर्क ऐसा था कि अमेरिकी सेना के पसीने छूट गए, साल दर साल सेनाओं की संख्या बढ़ाई जाने लगी।
1968 तक अमेरिकी सैनिकों की संख्या बढ़कर 5 लाख हो गई लेकिन वियतनाम के जवानों ने पीछे हटने से इनकार कर दिया। वियतनाम जैसे छोटे से देश से नहीं जीत पाने की झुंझलाहट में वह वियतनाम की जनता पर टूट पड़े।
आखिर में अमेरिका सेना द्वारा वहां की जनता का नरसंहार की तस्वीरें पूरी दुनिया के सामने आ गई। हालात ये हो गए कि खुद अमेरिका की जनता और मीडिया ने अपनी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी। वियतनाम गए सैनिकों के लिए उनके परिवारों की नाराजगी सामने आने लगी। लोगों का ऐसा विरोध प्रदर्शन देख सरकार पर दबाव बनने लगा और आखिर में 1973 में अमेरिका ने अपनी सेना को वापस बुला लिया था।
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