इस समिति की रिपोर्ट का असर पूरे देश के छात्रों पर पड़ने जा रहा है। समिति ने नीट की वैधता पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार क्षेत्र का हनन नहीं कर सकती। इसका कहना है कि राज्य यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोलते हैं और इसमें दाखिले का अधिकार केंद्र सरकार अपने हाथ में नहीं ले सकती।
समिति का कहना है कि नीट सीबीएसई के छात्रों, संपन्न छात्रों, अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों और कोचिंग इंस्टीट्यूट का मददगार है और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। सीबीआई ने एक रैकेट का पर्दाफाश किया है जिसमें नागपुर की एक शैक्षिक सलाहकार फर्म पर आरोप है कि वह 50 लाख रुपये लेकर छात्रों की जगह किसी और को नीट परीक्षा में बैठाती थी। इस खुलासे से राजन समिति की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने की बात की पुष्टि भी हो जाती है।
हाल ही में तमिलनाडु विधानसभा ने राज्य के लिए नीट की बाध्यता खत्म करने का विधेयक पारित किया जो अभी राष्ट्रपति के पास लंबित है। इसे मंजूरी मिलने की संभावना नहीं ही है क्योंकि बेशक इस विधेयक को सभी दलों का समर्थन हो लेकिन भाजपा इसके खिलाफ है। दिलचस्प बात यह है कि गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए नरेंद्र मोदी ने नीट का विरोध किया था लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में 2013 के उस फैसले को पलट दिया तो उन्होंने ही नीट का रास्ता साफ किया। गुजरात, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत तमाम राज्यों ने नीट का विरोध किया था। बहरहाल, 2017-18 से यह लागू हो गया। समिति की रिपोर्ट ने सियासी रंग ले लिया है। तमिलनाडु भाजपा ने समिति पर राजनीतिक पक्षपात का आरोप लगाया है।
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