The verdict on Vishweshwar temple may come in favor of Hindus, the court said; No evidence to prove that the property of Gyanvapi Waqf Board | वाराणसी के विश्वेश्वर मंदिर पर हिंदुओं के पक्ष में आ सकता है फैसला, कोर्ट ने कहा; ऐसा कोई साक्ष्य नहीं, जिससे साबित हो कि ज्ञानवापी वक्फ बोर्ड की संपत्ति

वाराणसीएक घंटा पहले
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वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित नंदी जी महाराज और काशी विश्वेश्वर मंदिर की तरफ से दाखिल दो मुकदमों पर सुनवाई कल जिले के सिविल कोर्ट में होगी। - Dainik Bhaskar

वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित नंदी जी महाराज और काशी विश्वेश्वर मंदिर की तरफ से दाखिल दो मुकदमों पर सुनवाई कल जिले के सिविल कोर्ट में होगी।

वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित नंदी जी महाराज और काशी विश्वेश्वर मंदिर की तरफ से दाखिल दो मुकदमों पर सुनवाई कल जिले के सिविल कोर्ट में होगी। सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने मूल वाद के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया और सुनवाई की तिथि 22 सितंबर नियत कर दी है। अदालत ने कहा कि वादी गण हिंदू है और ज्ञानवापी परिसर मस्जिद की संपत्ति वक्फ बोर्ड की संपत्ति लिस्ट में नहीं है। इस कारण से वक्फ एक्ट लागू नही होता है।

यहां पर ऐसा कोई साक्ष्य भी नहीं है, जिससे साबित हो कि यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। कोर्ट ने कहा कि वक्फ एक्ट 1955 की धारा 89 में वक्फ बोर्ड की संपत्ति होने पर वाद स्वीकार करने के पहले दो माह की नोटिस देनी जरूरी है। जो कि इन दोनों मामलों में लागू नहीं होती।

दीवानी न्यायालय को सिविल सुनवाई का अधिकार है

अदालत ने सुप्रीमकोर्ट के हवाले से कहा कि दीवानी न्यायालय को सिविल प्रकृति के वादों को सुनवाई की अधिकारिता है। वक्फ संपत्ति विवाद को देखा जाएगा कि वह वक्फ लिस्ट में है या नहीं। बता दें कि अदालत में वादी गण ने उद्घोषणा, स्थाई निषेधाज्ञा, आज्ञापक निषेधाज्ञा की अनुमति मांगी थी, जिस पर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने आपत्ति कर कहा था कि वाद में वर्णित तथ्यों के आधार पर मूलवाद के रूप में दर्ज नही किया जाए। अदालत ने कहा कि कोर्ट को यह देखना है कि वाद चलने योग्य है या नहीं। पक्षकार बनाए गए सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को नोटिस देना जरूरी है या नहीं। अदालत ने विचार करने के बाद दोनों वादों को सुनवाई योग्य बताया।

यह था पूरा मामला:
आदि विश्वेश्वर मंदिर की तरफ से सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन और महंत शिवप्रसाद पांडेय ने कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया था। इसमें कहा गया था कि सतयुग से पहले भगवान शिव ने स्वयं ज्योतिर्लिंग यहां पर स्थापित की थी। यह शाश्वत है जो कि नष्ट नहीं हो सकता। मंदिर को औरंगजेब के जमाने मे नष्ट कर दिया गया था, लेकिन शिवलिंग नहीं टूट पाया और बाद में उसी पर मस्जिद का ढांचा बनवा दिया गया। इससे ज्ञानवापी न तो मस्जिद वक्फ की है और न ही मुस्लिमों की। हिंदुओं को पूजा पाठ और ज्योतिर्लिंग की पूजा का अधिकार है।

नंदी महराज की तरफ से डोम राज के परिवार ने दाखिल किया था केस
दूसरा मुकदमा नंदी जी महाराज पर सितेंद्र चौधरी डोम राज परिवार की तरफ से दाखिल किया गया है। इस मुकदमे में कहा गया कि नंदी शिव की सवारी हैं और यहां उनका रहना आवश्यक है। शिव और नंदी की पूजा एक साथ करे यह हिंदुओं का परम्परागत अधिकार है। अदालत से कहा गया कि ज्ञानवापी ढांचा खड़ा करना हिंदुओं के अधिकारों पर कुठाराघात है। अदालत से पूजा पाठ और मंदिर के धार्मिक रस्म करने की अनुमति मांगी गई। काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को आदेशित करने के लिए कहा गया कि वर्तमान ढांचा हटने के बाद नए मंदिर के निर्माण और रखरखाव की जिम्मेदारी दी जाए।

अदालत में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की तरफ से रईस अहमद और मुमताज अहमद ने कहा कि वक्फ बोर्ड को पार्टी नही बनाया जा सकता। वक्फ की संपत्ति के सुनवाई का अधिकार लखनऊ स्थित वक्फ बोर्ड को है। ऐसे में यह दावा नहीं चल सकता है। अदालत ने इन दोनों मामलों में 15 सितंबर को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था, जिसमें आज यह आदेश पारित हुआ है। नंदी महराज का मुख आज भी आदि विश्वेश्वर मंदिर की ओर है।

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