Afghanistan: तालिबान राज में भुखमरी की कगार पर करोड़ों लोग, पेट भरने के लिए बच्चों को बेचने तक तैयार | Afghanistan crisis under Taliban rule millions of people will face acute hunger many children died


काबुल में महिलाओं का प्रदर्शन (फोटो- AP/PTI)

जब लोकतंत्र ढहता है, तो अवाम का कितना बुरा हश्र होता है इसे समझने के लिए पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान की हालत को समझना जरूरी है. अफगान लोगों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है. जहां अब तालिबान की हुकूमत है और चंद महीनों की हुकूमत में ही वहां की अवाम के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है. गरीबी और भुखमरी के कारण लोग बच्चे तक को बेच रहे हैं. भोजन और इलाज के अभाव में कई मासूम दम तोड़ चुके हैं.

तालिबानी हुकूमत के करीब ढाई महीने बाद भी में अफगानिस्तान में हक और हुकूक की आवाज उठ रही है. तालिबान राज में अफगानी महिलाएं शिक्षा और रोजगार का अधिकार मांग रही हैं. यूनाइटेड नेशंस से दखल देने की मांग कर रही हैं. तालिबान राज में सबसे बुरा हाल रोजगार को लेकर है. अफगानिस्तान में दफ्तरों पर ताले लग रहे हैं. बैंक बंद होने के कगार पर हैं. काबुल से कंधार तक लोग अपने घरों के टीवी, फ्रिज, पलंग, सोफा बेचकर गुजर बसर कर रहे हैं. इतना ही नहीं पेट भरने के लिए अफगानी नागरिक अपने जिगर के टुकड़ों को भी बेच रहे हैं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में ऐसे कई परिवार हैं जिन्होंने अपने बच्चों को बेच दिया है या बेचने के लिए तैयार हैं. हाल ही में एक मां ने अपने बाकी बच्चों को भूखों मरने से बचाने के लिए अपनी कुछ महीने की बच्ची को 500 डॉलर यानी करीब 37 हजार रुपये में बेच दिया. मतलब अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से लोगों के लिए पेट भरना तक मुश्किल हो गया है. कई बच्चे कुपोषण के शिकार हो चुके हैं और इलाज की कमी से जूझ रहे हैं.

खासतौर पर अल्पसंख्यक समुदाय और अनाथ बच्चों की हालत सबसे ज्यादा खराब है. हाल ही में पश्चिमी काबुल के एतेफाक शहर में आठ बच्चों की भूख से मौत हो गई. ये बच्चे छोटे-मोटे काम करके अपनी जिंदगी चला रहे थे, लेकिन तालिबानी शासन में उनके पास कोई काम नहीं बचा था. तालिबान राज से आती ये खबरें इस बात पर मुहर लगा रही हैं कि देश की इकोनॉमी बेहद बुरे दौर से गुजर रही है या यूं कहें कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है.

भुखमरी से निपटने के लिए तालिबान की नई योजना

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट भी यही कह रही है कि अफगानिस्तान में लोग भुखमरी के कगार पर हैं लेकिन तालिबान सरकार के पास अकाल और भुखमरी से देश को उबारने की कोई ठोस योजना नहीं है. हालांकि अब जाकर तालिबान सरकार ने भुखमरी से निपटने के लिए नई योजना शुरू की है. इसके तहत देश में कामगारों को मेहनताने के रूप में पैसे नहीं बल्कि गेहूं दिया जाएगा.

तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने बताया कि काम के बदले अनाज की इस योजना के तहत अभी सिर्फ राजधानी काबुल में 40 हजार पुरुषों को काम दिया जाएगा. काबुल में मजदूरों को नहरें खोदने और बर्फ के लिए खंदकें बनाने जैसे काम दिए जाएंगे. इस योजना का मकसद उन लोगों को काम देना है जिनके पास फिलहाल कोई काम नहीं है. जो लोग सर्दियों की शुरुआत में ही भुखमरी का खतरा झेल रहे हैं..उन्हें इस योजना के तहत काम दिया जाएगा. तालिबान के मुताबिक, काम के बदले अनाज योजना दो महीने चलेगी. इस दौरान 11,600 टन गेहूं तो सिर्फ राजधानी काबुल में बांटा जाएगा. हेरात, जलालाबाद, कंधार, मजार-ए-शरीफ और पोल-ए-खोमरी जिलों में 55,000 टन गेहूं बांटा जाएगा.

गरीबी और भुखमरी के अलावा अफगानिस्तान पर एक और संकट गहराता जा रहा है..वो है- बिजली संकट. बिजली सप्लाई के बदले पड़ोसी देशों को भुगतान नहीं देने के कारण बिजली आपूर्ति बाधित हो रही है. उधर..संयुक्त राष्ट्र पहले ही चेता चुका है कि देश में सर्दियां बेहद खतरनाक साबित होंगी.

2.28 करोड़ लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे- UN

यूएन के विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी डायरेक्टर डेविड बेस्ली के मुताबिक, अफगानिस्तान की कुल 3 करोड़ 90 लाख की आबादी में से अभी करीब 2 करोड़ 28 लाख लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. जिनके भुखमरी के कगार पर पहुंचने के संकेत मिल रहे है. दो महीने पहले ऐसे अफगानों की तादाद लगभग 1 करोड़ 40 लाख ही थी. यूएन की इस रिपोर्ट के मुताबिक अगर समय रहते खाने और पैसों का इंतजाम नहीं हुआ तो हालात भयावह हो जाएंगे..अफगानिस्तान में बच्चे-बूढ़े भूख से मरने लगेंगे.

दरअसल, अफगानी अर्थव्यवस्था का तीन चौथाई हिस्सा अंतरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर करता है. अफगानिस्तान की मुसीबत इसलिए भी अधिक बढ़ गई है..क्योंकि अमेरिका और दूसरे मुल्कों में इसकी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया गया है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय संगठनों के जरिए मिलने वाली मदद पर भी रोक लगा दी गई है. वहीं अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अमरुल्लाल सालेह ने कहा है कि अफगानिस्तान के इस हालत के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान हैं, क्योंकि अफगानिस्तान पर तालिबान नहीं बल्कि पाकिस्तान का कब्जा है.

सालेह के मुताबिक, पिछले ढाई महीने में अफगानिस्तान की जीडीपी लगभग 30 फीसदी गिर चुकी है. गरीबी का स्तर 90 फीसदी पहुंच चुका है..सिविल सेवाएं ठप हो चुकी हैं..और बैंक बंद हो चुके हैं. वहां शरिया के नाम पर महिलाओं को गुलाम बनाया जा रहा है. शहरी मध्यम वर्ग देश छोड़कर जा चुका है. मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी पर बैन लग चुका है. सालेह ने ये भी दावा किया है कि अफगानिस्तान के विदेशी और रक्षा से जुड़े फैसले पाकिस्तान में सेना मुख्यालय में लिए जाते हैं. और अफगानिस्तान की कूटनीति का केंद्र दोहा बन चुका है.

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