अफगानिस्तान इन दिनों लगातार चर्चा में है।
कई मायनों में करजई बुजकशी के सफल प्रबंधन का अर्थ था स्थानीय संस्कृति और अल्पसंख्यक जनजाति का अवमूल्यन, राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली शक्तिकी मान्यताओं को मजबूर करना और बुजकशी की प्रतिष्ठा को एक राष्ट्रवादी उद्यम में आत्मसात करना। आज बुजकुशी के नाम पर करजई को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त है और यही राष्ट्रीय खेल के रूप में खेला जाता है। इस उदाहरण के आधार पर यह साफ है कि प्रत्येक समाज की अनेक उपव्यवस्थाएं हैं, जैसे राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आदि। ये सभी उपव्यवस्थाएं खेल से घनिष्ठ रूप से अंतरसंबंधित हैं।
इसमें एक अन्य आधारभूत तथ्य यह भी निहित है कि आज राष्ट्रीय और वैश्विक, दोनों ही स्तर पर प्रतिस्पर्धी खेल काफी सीमा तक बड़े-बड़े पूंजीपतियों और आर्थिक रूप से प्रभावशाली संस्था जैसे, आईओसी (अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति), आइसीसी, आइपीएल, एनबीए, फीफा आदि के संयोग द्वारा नियंत्रित हो रहे हैं। यहां तक कि सालोंं से खेल विशेषज्ञ भी मुख्य रूप से कुछ ही गिने-चुने खेल जैसे क्रिकेट, फुटबाल, बास्केटबाल आदि पर ध्यान केंद्रित कर, उन तमाम कारकों को उजागर करते आ रहे हैं जो इन खेलों के वैश्विक विस्तार और प्रभुत्व को बढ़ावा देते हैं।
इतना ही नहीं, मीडिया तंत्र ने भी व्यापक रूप से इन्हीं विशेषाधिकार प्राप्त खेलों से संबंधित मुद्दों को संबोधित किया है। इस प्रकार खेलों ने विश्व भर की संस्कृतियों को मिश्रित करने का प्रयास किया है, फिर भी इस मिश्रण में इन संगठनों के प्रतिनिधित्व वाले खेलों और इसी के साथ पश्चिमी संस्कृति की प्रधानता मिली है। खेल और खेल भावना के लिहाज से यह प्रभुत्व काफी खतरनाक है।
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