लैंगिक अंतर को पाटने से जुड़े कुछ तथ्य

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  • भारत में महिलाओं की जनसंख्या 66 करोड़ है। महामारी के साथ ही आय घटने से महिलाओं को भोजन, स्वास्थ्य और बालिकाओं की शिक्षा से लेकर नौकरी तक हर मोर्चे पर बाधाओं का सामना करना पड़ा है। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि 57% महिलाएं एनीमिक हैं।
  • भारत की 88.7% विवाहित महिलाएं प्रमुख घरेलू निर्णयों में भाग लेती हैं। लेकिन पिछले 12 महीनों में काम करने वाली 15-49 वर्ष की आयु की केवल 25.4% महिलाओं को नकद भुगतान किया गया था।
  • बैंक या बचत खाते का उपयोग करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़कर 78.6% हो गई है। प्रधानमंत्री जनधन जैसी योजना से मदद मिल रही है। लेकिन श्रम-बल में महिलाओं की भागीदारी कम हो गई है।
  • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसार, नौकरी की खोज करने वाली महिलाओं का प्रतिशत गिरकर 9.2 प्रतिशत रह गया है।
  • वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम द्वारा जारी 2022 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स के 146 देशों में भारत का स्थान 135 वां है। इस इंडेक्स का आधार आर्थिक भागीदारी और अवसर; शिक्षा प्राप्ति; स्वास्थ्य और अस्तित्व, और राजनीतिक सशक्तीकरण है।

दुर्भाग्य है कि भारत अपने अधिकांश पड़ोसी देशों की तुलना में निचले स्थान पर है। इस मामले में सामान्यतः दक्षिण एशियाई क्षेत्र की स्थिति बहुत ही खराब है।

खराब रैंकिंग में सुधार करने का तरीका –

  • महिलाएं ही महिलाओं के विकास में सबसे बड़ी सहायक बन सकती हैं।
  • इस हेतु सभी स्तरों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाना अनिवार्य है, ताकि नौकरियों और संसाधनों तक उनकी पहुंच अधिक-से-अधिक हो सके।
  • सरकार का भी दायित्व है कि महिला सशक्तिकरण को जुमला न रखकर धरातलीय स्तर पर आगे बढ़ाने का प्रयत्न करे। इससें संबंधित आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को दूर किय जाना चाहिए।

 ‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 जुलाई, 2022

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