कानून और वास्तविकता में अंतर (गर्भपात कानून)

To Download Click Here.

हाल ही में अमेरिका के गर्भपात कानून या एबॉर्शन लॉ में फेरबदल करके उसे 50 साल पुराने ढांचे पर ले जाया गया है। इसके मद्देनजर भारत के उदार गर्भपात कानून और वास्तविक स्थितियों को कुछ बिंदुओं में समझा जाना चाहिए –

  • भारत का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम 1970 के दशक में पारित किया गया था, और 2021 में इसमें संशोधन किया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि असुरक्षित गर्भपात के कारण भारत में हर दिन लगभग आठ महिलाओं की मृत्यु होती है। 2007-11 के बीच 67%  गर्भपात को  असुरक्षित के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • असुरक्षित गर्भपात को मातृ मृत्यु के शीर्ष तीन कारणों में से एक माना जा सकता है।
  • मूल अधिनियम में चिकित्सकों के बोर्ड की कोई आवश्यकता नहीं समझी गई थी। समय के साथ कानून में होने वाले न्यायिक हस्तक्षेप के चलते चिकित्सकों के बोर्ड को जोड़ा गया है। यह महिलाओं की प्रजनन संबंधी स्वतंत्रता को बाधित करता है।
  • स्त्री रोग विशेषज्ञों या रेडियोलॉजिस्ट की कमी को देखते हुए यह मेडिकल बोर्ड ग्रामीण क्षेत्रों में संभव नहीं है। हाल ही एक अध्ययन में ग्रामीण उत्तर भारत में स्त्री रोग विशेषज्ञों की  82% और दक्षिण भारत में 57.2% की कमी पाई गई है। यही कारण है कि असुरक्षित गर्भपात, गरीब और हाशिए पर रहने वाली जनसंख्या में कहीं अधिक होता है।

ऐसी प्रणालीगत बाधा ही महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात की मांग करने से रोकती है। भारत का गर्भपात कानून अच्छा है। लेकिन वास्तविकता के धरातल पर स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की कमी के कारण इसमें बदलाव की आवश्यकता है। मातृ मृत्यु दर की कमी के लक्ष्य को पाने में भारत की प्रतिबद्धता के लिए भी इसका परिष्कार जरूरी है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 2 जुलाई, 2022

The post कानून और वास्तविकता में अंतर (गर्भपात कानून) appeared first on AFEIAS.


Post a Comment

और नया पुराने