उच्चतम न्यायालय का लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति देना

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कल्पना कीजिए कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय देशद्रोह कानून को निरस्त करने की प्रक्रिया में है, और आप वकील या न्यायालय के कोई अधिकारी न होते हुए भी इस ऐतिहासिक प्रक्रिया के साक्षी बने हुए हैं। हर्ष का विषय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कभी स्वप्न समझे जाने वाले इस विषय को वास्तविकता बना दिया है। जी हाँ, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की प्रक्रिया की लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति दे दी गई है।

निः संदेह यह भारत की लोकतांत्रिक यात्रा के लिए मील का एक पत्थर है। इससे दो सकारात्मक प्रभावों की संभावना दिखाई देती है। (1) इससे भारत के शासन को परिभाषित करने वाले महत्वपूर्ण मामलों में जनता की रुचि जाग्रत रहेगी। साथ ही न्यायाधीशों और बड़े नाम वाले वकीलों के लिए जवाबदेही बनी रहेगी। (2) यह गवाहों और वादियों की व्यक्तिगत रूप से पेश होने की असमर्थता को बचाएगा और स्थगन को कम करेगा।

पूर्व सर्वोच्च न्यायाधीश रमन्ना ने इसे “दोधारी तलवार” करार दिया था। इससे न्यायाधीशों की निर्णय देने में सतर्कता बढ़ जाती है, क्योंकि वे लगातार जनता की नजर में होते हैं। उनका गलत रवैया उन्हें सोशल मीडिया ट्रोल का शिकार बना सकता है।

अच्छी बात यह है कि कर्नाटक, ओडिशा और गुजरात ने इस मॉडल को अपनाया है। अन्य राज्यों को भी इसे प्रत्येक न्यायालीन स्तर पर अपनाना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट और ब्रिटेन के सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत पहले ही लाइव-स्ट्रीमिंग को शुरू कर दिया था।

यह प्रथा उच्चतम न्यायालय में बहुमूल्य लोकतंत्र, क्रूर प्रतिस्पर्धी राजनीति और सामाजिक मंथन पर पूछे जाने वाले अद्भुत प्रश्नों और सुनवाई में जनता को साक्षी बनाती है। यही इसकी सफलता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 22 सितम्बर, 2022

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