ग्रीन या हरित औद्योगिक नीति की जरूरत

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हाल ही में भारत के उद्योगों के लिए हरित यानि कम-कार्बन योजना लाए जाने पर जोर दिया जा रहा है। अभी तक भारत में स्वच्छ ऊर्जा को घरेलू बाजार को केंद्र में रखकर बढ़ावा दिया जाता रहा है। इसके साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा की कीमत कम करने की लगातार कोशिश की जाती रही है।

इस प्रयास से जुड़े कुछ बिंदु –

  • ऊर्जा के लिए लागत प्रभावशीलता को अभी तक स्वच्छ ऊर्जा में शोध एवं अनुसंधान से जोड़कर बहुत कम देखा गया है।
  • तकनीक अपग्रेडेशन की दीर्घकालीक योजनाओं से वर्तमान की जरूरतें पूरी नहीं हो सकती हैं।
  • अनुसंधान एवं विकास और इसकी तैनाती में निवेश नगण्य रहा है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों के विनिर्माण, हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण मिशन की पेशकश से कुछ सुधार अवश्य हुआ है, परंतु यह पर्याप्त नहीं है।

हरित औद्योगिक योजना की वैश्विक स्थिति पर एक नजर –

  • इस संदर्भ में अमेरिका के इंफ्लेशन रिडक्शन एक्ट और चीन की ग्रीन इंडिस्ट्रियल स्ट्रेटजी को रेखांकित किया जा सकता है।
  • एक प्रकार से प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच हरित सब्सिडी युद्ध जैसा कुछ चल रहा है। इसके लिए प्रासंगिक प्रौद्योगिकी के निर्यात को रोका जा रहा है।
  • इस स्थिति से स्वच्छ ऊर्जा निवेश में परिवर्तन आने की पूरी संभावना है।

भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के पास हरित औद्योगिक रणनीति और प्रौद्योगिकी न होने से उन्हें निवेश में कमी का सामना करना पड़ सकता है। भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए इस प्रकार की प्रौद्योगिकी में नवाचार, अनुसंधान एवं विकास को तुरंत बढ़ावा देना चाहिए। इस क्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट और अकादमिक साझेदारी के साथ स्वच्छ ऊर्जा वेल्यू चेन में महारथ हासिल करने की ओर बढ़ना चाहिए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 7 फरवरी, 2023

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