To Download Click Here.
हाल के कुछ वर्षों में लगातार घट रही कुछ घटनाओं ने देश में लोकतंत्र की स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस वर्ष के गणतंत्र दिवस की मनमोहक परेड में देश की सॉफ्ट और हार्ड पावर के भरपूर प्रदर्शन के बावजूद गिरते लोकतंत्र की सच्चाई ने चमक को कम कर दिया है।
क्षरण के संकेत – संवैधानिक अपराधों के बारे में बार-बार आने वाली रिपोर्टें हमारी गहराई और गुणवत्ता पर सवाल उठाती है। हाल ही के दिनों में विपक्ष के संसदीय बैठकों का बहिष्कार, राज्यसभा में प्रधानमंत्री के भाषण को बाधित करना, संसद की कार्यवाही को रिकार्ड करने के लिए विपक्ष के एक नेता पर अनुपातहीन दंड लगाया जाना तथा जन-प्रतिनिधियों की सीमा पार करने वाली घटिया गतिविधियाँ आदि कुछ ऐसे प्रमाण हैं, जिन्होंने संसद की पवित्रता का लगातार हनन किया है।
देश के एक नामी कॉलेज में 18 वर्षीय दलित छात्र का आत्महत्या करना और किसी स्कूल के 16 वर्षीय छात्र की सामान्य सी बात पर बुरी तरह पिटाई होना, ऐतिहासिक और सामाजिक असमानताओं के बने रहने की दर्दनाक याद दिलाता है। उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल के एक विधायक को सड़क जाम करने के 15 साल पुराने मामले में दो साल की जेल की सजा दी गई है। यह अभियोजन प्रक्रियाओं की दमनकारी वास्तविकताओं को दिखाता है। इससे यही प्रमाणित होता है कि वर्तमान सरकार के राज में जैसे-जैसे न्याय का पहिया घूमता है, कैरियर नष्ट हो जाते हैं, प्रतिष्ठा बर्बाद हो जाती है और अपमान की अंतहीन गाथा में आत्माएं झुलस जाती हैं।
संविधान के उदारवादी स्वरूप की उस समय धज्जियां उड़ गईं, जब देश की सर्वोच्च अदालत ने छुट्टी के दिन विशेष बैठक में देशद्रोह के एक विकलांग अभियुक्त की जमानत निलंबित करने का फैसला किया था। संस्थागत अस्वस्थता के ऐसे उदाहरण भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के क्षत-विक्षत भवन की छवि प्रस्तुत कर रहे हैं।
राजनीतिक विचार-विमर्श की कमी
लोकतांत्रिक हानि का सबसे प्रबल प्रमाण राजनीतिक बहसों की घटती संख्या और समय में मिल रहा है। नेता एक-दूसरे के लिए आहत करने वाले अपशब्दों का प्रयोग करते हैं। राजनीतिक भाषा पाखंड और व्यक्तिगत शत्रुता में डूबी हुई है। यह हमारी राजनीति की संकीर्णता को दर्शाती है।
भारत के क्षीण लोकतंत्र को केवल उदारीकरण के माध्यम से ही पुनर्जीवित किया जा सकता है। हमारी राजनीति को संकीर्ण पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से ऊपर उठकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करनी होगी।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित अश्विनी कुमार के लेख पर आधारित। 1 मार्च, 2023
The post पतनशील भारतीय लोकतंत्र appeared first on AFEIAS.
एक टिप्पणी भेजें