श्रम-कानून संशोधन कितना उचित है?

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हाल ही में तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकारों ने 12 घंटे के कार्यदिवस की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा है। इसने भारत में श्रम कानूनों पर बहस छेड़ दी है। सप्ताह में काम के 48 घंटे के साथ कार्यदिवसों के विस्तार का प्रस्ताव पहले से ही रखा जा रहा है। हालांकि इस संशोधन के प्रभाव में आने की संभावना नगण्य है।

दूसरी ओर, इस प्रकार के परिवर्तन भारतीय विनिर्माण के लिए अच्छे साबित हो सकते हैं। यह कहा जाता रहा है कि अगर भारतीय श्रम कानूनों को नियोक्ताओं के पक्ष में कर दिया जाए, तो घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ाया जा सकता है। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

जानने का प्रयास करते है कि वास्तविकता क्या है –

  • श्रम कानून संशोधन को सफल बनाने के लिए हमें अपनी औद्योगिक नीति सहित कई अन्य परिवर्तन करने चाहिए। हमारे देश में कान्ट्रेक्ट लेबर के व्यापक प्रचलन के कारण, कारखानों की वास्तविक स्थिति, कागजों की तुलना में कहीं अधिक नियोक्ता समर्थक है।
  • एक सरल, अधिक पारदर्शी और समान रूप से लागू होने वाले ऐसे नियामक वातावरण की जरूरत है, जो निरीक्षकों की विवेकाधीन शक्ति को कम कर सके। इससे नियोक्ताओं की मदद हो सकती है। रोजगार के अवसरों को बढ़ाकर यह श्रमिकों की भी मदद कर सकता है। (भारत में नियोक्ताओं के शक्तिशाली होने का कारण ही यही है कि यहाँ श्रमिको की संख्या नौकरियों से अधिक है।)
  • नियामक परिवर्तनों की निश्चित रूप से आवश्यकता है, लेकिन उनके साथ स्थानीय और जमीनी बुनियादी ढांचे में पर्याप्त निवेश होना चाहिए। अन्यथा हम बढ़ी हुई अनिश्चितता और बिगड़ती कामकाजी परिस्थितियों के गलत परिणाम का बोझ उठाएंगे। दूसरी ओर, अधिक नौकरियों के रूप में कोई लाभ नहीं मिल सकेगा।

केंद्र और राज्य; दोनों सरकारों ने बुनियादी ढांचे के महत्व को महसूस किया है, और इसमें भारी निवेश भी किया है। लेकिन स्थानीय स्तर पर, जहां अधिकांश छोटे और मध्यम उद्यम संचालित होते हैं, बिजली की आपूर्ति, सड़क की गुणवत्ता, इंटरनेट कनेक्टिविटी, क्रेडिट व अन्य सहायता अभी भी खराब स्तर की हो सकती हैं। टियर-2 और टियर-3 शहरों के रोजगार सृजन के केंद्र बने औद्योगिक कलस्टर, अभी भी पर्याप्त बिजली की कमी से जूझ रहे हैं।

संक्षेप में, श्रम कानूनों को कमजोर करने के लाभ आकस्मिक और अनिश्चित हैं, जबकि लागत निश्चित है। श्रमिकों की भलाई और सुरक्षा को संतुलित करते हुए नियोक्ताओं को बाजार की स्थितियों में उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए लचीलेपन की अनुमति देना जरूरी है। यह आसान नहीं है? और कम समय में दोनों पक्षों को नुकसान हो सकता है। लेकिन अगर हम आर्थिक विकास और अच्छी नौकरियां दोनों चाहते हैं, तो संतुलन बनाना होगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमित बसोले के लेख पर आधारित। 18 मई, 2023

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