निजी क्षेत्र को जलवायु अनुकूल बनाने हेतु प्रयास

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हाल ही में जी-20 समर्थित इंटरनेशनल सस्टेनेबिलिटी स्टैन्डर्डस् बोर्ड (आईएसएसबी) ने ‘ग्रीनवॉशिंग’ को रोकने के लिए ऐसे मानदंड जारी किए हैं, जो बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन कंपनियों को कैसे प्रभावित करता है। इसके पीछे के कारणों को कुछ बिंदुओं में जानते हैं –

  • पिछले कुछ वर्षों में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और नेट-जीरो लक्ष्य तक पहुंचने की प्रतिज्ञाओं और प्रतिबद्धताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इन मानदंडों से पता चल सकेगा कि वाकई इन संकल्पों को पूरा किया जा रहा है या नहीं।
  • धारणीयता और जलवायु संबंधी उद्घाटन से कंपनी के निवेशकों को जोखिमों और कंपनी के अवसरों का पता चल सकेगा। ग्लासगो के कोप-26 में बाजार और निवेशकों की मांग पर ही इन मानदंडों को बनाया गया है। अभी तक, समय के साथ-साथ विकसित किए गए स्वैच्छिक धारणीयता मानदंडों पर ही कंपनियां चलती आई थीं।
  • अब पूरे विश्व में एक ही मानदंड होने से समय-समय पर बिखरे हुए मानदंडों के बनाए जाने पर आने वाले खर्च, समय और जटिलताओं से बचा जा सकेगा।
  • कंपनियों को इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की जरूरत नहीं होगी। फिर भी, एक वैश्विक मानक होने से अनुपालन सरल हो जाएगा, और निवेशकों को बेहतर निर्णय लेने में आसानी होगी।
  • भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) अपनी बिजनेस रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट को वैश्विक बेंचमार्क के अनुरूप बनाने पर विचार कर सकता है।
  • आईएसएसबी ने इंटरऑपरेबिलिटी के मुद्दों को भी ध्यान में रखा है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 जून, 2023

नोट- ‘ग्रीनवॉशिंग’ का अर्थ उस प्रथा से है, जिसमें कंपनियों और सरकारें सभी प्रकार की गतिविधियों को जलवायु – अनुकूल बता देती हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है।

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