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हाल ही में भारत सरकार ने नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के गठन की योजना बनाई है। इस फाउंडेशन के बोर्ड के पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे। इसमें पांच साल की अवधि के लिए, 50,000 करोड़ का कोष होगा। इस फाउंडेशन को वैज्ञानिक अनुसंधान को उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करने के लिए शीर्ष निकाय के रूप में डिजाइन किया गया है।
फिलहाल, अनुसंधान एवं विकास में भारत काफी पीछे चल रहा है। 1980 में भारत और दक्षिण कोरिया इस क्षेत्र में बराबरी पर थे। दोनों देशों ने अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.6% खर्च किया था। चार दशक बाद आज भारत का व्यय 1% से भी कम है, जबकि दक्षिण कोरिया का 5% के करीब है। मुख्य बिंदु यह है कि इसका श्रेय निजी क्षेत्र को जाता है। कोरिया के सैमसंग समूह का ही आर एडं डी व्यय भारत से ज्यादा है। इसी प्रकार, मैक्सिकों को देखें, तो उसका आर एंड डी व्यय और जीडीपी अनुपात दशकों से स्थिर है। इसलिए मैक्सिकों की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है। दूसरी ओर, ताइवान में भी पिछले चार दशकों में निजी क्षेत्र के नेतृत्व में सकल घरेलू उत्पाद में अनुसंधान एवं विकास की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई है। भारत में अभी इस क्षेत्र के व्यय का 56% सरकार से और 35% निजी क्षेत्र से आता है। इजराइल में तो निजी क्षेत्र का योगदान 88% है।
नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की सफलता इस पर टिकी होगी कि यह भारत की बड़ी कंपनियों को इस क्षेत्र में व्यय बढ़ाने के लिए कितना प्रेरित कर पाता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 जून, 2023
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