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भारत में घर-परिवार ही बड़ी बचत करते हैं। हमारी आर्थिक नीति भी इस प्रकार की घरेलू बचत पर काफी कुछ निर्भर करती है। इससे वित्तीय अस्थिरता के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है। इस पृष्ठभूमि को देखते हुए घरेलू बचत के वर्तमान रुझान पर कुछ बिंदु –
– 2018-19 और 2022-23 के बीच तीन रुझान सामने आए हैं –
1) सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में परिवारों की वित्तीय संपत्ति 12% से घटकर 10.9% हो गई है।
2) वित्तीय देनदारियां 4.1% से बढ़कर 5.8% हो गई हैं।
3) इन रुझानों के परिणामस्वरूप, 2022-23 में परिवारों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति सकल घरेलू उत्पाद का 5.1% रही। यह 7.5% के पुराने औसत से काफी कम थी।
– इन अनुपातों को देखते हुए यह देखना जरूरी हो गया कि बैंकों से ली गई अतिरिक्त उधारी कहाँ जा रही है,
और इसका आर्थिक प्रभाव क्या पड़ रहा है।
– मौद्रिक नीति समिति की बैठक के विवरण से पता चलता है कि यह आवास, वाहन और टिकाऊ वस्तुओं जैसी
भौतिक संपत्तियों में व्यय की गई है।
– एक पक्ष इसे सकारात्मक विकास की तरह देखता है, क्योंकि इससे निजी बचत को बढ़ावा मिलता है। यह सकल
घरेलू उत्पाद का लगभग 60% है।
– दूसरा पक्ष बैंकों के जोखिम का है। आरबीआई के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में वार्षिक खुदरा ऋण वृद्धि 30%
रही है। इसमें सुरक्षित खुदरा ऋण 23% की दर से बढ़ा है। इसी अवधि के दौरान अन्य क्षेत्रों में ऋण 12-14%
की दर से बढ़ा है।
आरबीआई इसे विकास का बाहरी स्तर मान रहा है। हमारी निर्भरता अंततः घरेलू बचत पर ही टिकी हुई है। अच्छी बात यह है कि व्यापक आय समूहों की डिस्पोजेबल आय में वृद्धि हुई है। अब बचतकर्ताओं के समूह में तेजी से विस्तार की जरूरत है।
“द टाइम्स ऑफ इंडिया” में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 3 नवंबर, 2023
The post आर्थिक विकास को उपभोग के साथ बचतकर्ताओं की जरूरत है appeared first on AFEIAS.
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