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भारत में आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले तीन विधेयक संसद के चालू सत्र में 140 से अधिक सदस्यों की अनुपस्थिति में पारित किए गए हैं। संसदीय स्थायी समिति की जांच के बाद प्रस्तुत किए जाने के बाद भीए उन्हें पूर्ण सदन में विचार-विमर्श की आवश्यकता थी, जो नहीं किया गया। स्पष्ट तौर पर ये तीनों ही कानून कमियों के साथ पारित कर दिए गए हैं। कुछ बिंदु-
- नए कानूनों में भारतीय न्याय संहिता भारतीय दंड संहिता का भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता आपराधिक प्रक्रिया संहिता का और भारतीय साक्ष्य अधिनियम इंडियन एविडेंस एक्ट का स्थान लेगा।
- नए कानूनों में अनुभागों को पुनः व्यवस्थित करने के अलावाए मूल कानूनों की अधिकांश भाषा और सामग्री को बरकरार रखा गया है।
- भारतीय न्याय संहिता के खंड 106 में किसी चिकित्सक की लापरवाही से हुई मृत्यु पर उसे पाँच वर्ष के कारावास के साथ हर्जाने का दंड दिया जा सकता था। इसे घटाकर दो वर्ष कारावास और हर्जाने में बदल दिया गया है।
- जहाँ तक न्याय प्रक्रिया के तमाम पहलुओं जैसे चार्जशीट, कोर्ट द्वारा संज्ञान, जमानत और फैसले को समय-सीमा में बांधने का सवाल है, इसे अमल में लाना आसान नहीं है। भारत में पुलिस-आबादी अनुपात 152.80 प्रति लाख है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर से काफी कम है। अतः पुलिस को समय-सीमा में बांधने पर अभियोजन की गुणवत्ता और खराब हो सकती है।
- आतंकवाद को सामन्य दंड कानून में शामिल किए जाने पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है। यह पहले विशेष कानून के तहत दंडनीय था। आतंकवाद जैसे गंभीर आरोपों को हल्के में लिया जाना कितना ठीक हो सकता है?
- नए देशद्रोह कानून में देश के खिलाफ चलाई जाने वाली किसी भी गतिविधि, यहां तक कि बोलने और लिखने पर भी कठोर दंड का प्रावधान है। आशंका है कि इस कानून का दुरूपयोग किया जा सकता है।
- नई आपराधिक प्रक्रिया में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि पुलिस-हिरासत की अवधि 15 दिन से ज्यादा हो सकती है या नहीं।
नागरिकों को न्याय दिलाने के उद्देश्य का दावा करने वाले इन कानूनों के अमल से ही इनकी सार्थकता का पता चल सकेगा।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 22 दिसंबर, 2023
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