नोएडा डीएम सुहास एलवाई की कहानी संघर्षों से भरी रही है। बचपन से दिव्यांग सुहास स्कूली पढ़ाई से लेकर आजतक संघर्षों के बदौलत अपनी मंजिल तक पहुंचे हैं। पहले इंजीनियरिंग की, फिर पार्ट टाइम में तैयारी करके उन्होंने यूपीएससी क्लियर किया।
जीवन की इस घटना ने सुहास को तोड़ दिया था। जिंदगी को खत्म मान चुके सुहास ने यूपीएससी की ओर अपने आप को बढ़ा दिया। घर में अकेला कमाने वाला शख्स, तैयारी पार्ट टाइम में करने लगा। दिन में नौकरी और रात को पढ़ाई। कुछ ऐसा ही सफर रहा है नोएडा के डीएम सुहास एलवाई (IAS Suhas LY) का।
कर्नाटक के शिगोमा में जन्म लेने वाल सुहास, जन्म से ही दिव्यांग थे। पिता जिस नौकरी में थे वहां कोई स्थाई ठिकाना नहीं था। शुरूआती पढ़ाई सुहास ने कन्नड़ भाषा से ही। सातवीं क्लास के बाद जब वो अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में दाखिले के लिए पहुंचे तो उन्हें यह कर एडमिशन नहीं मिला कि वो कन्नड़ भाषा में पढ़े हैं, अंग्रेजी मीडियम में टिक नहीं पाएंगे। तीन स्कूलों ने उन्हें एडमिशन देने से मना कर दिया।
किसी तरह से एक स्कूल में एडमिशन मिला। एक दिव्यांग मासूम के लिए अपनी पढ़ाई पूरी करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। एक इंटरव्यू में सुहास अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उनके पिता ने कभी उन्हें महसूस नहीं होने दिया कि वो दिव्यांग हैं, लेकिन इस बात को समाज हमेशा महसूस कराते रहा है। पैर से दिव्यांग होने के बावजूद सुहास के पिता उन्हें खेलने के लिए प्रेरित करते रहते थे, उनके साथ खेलते थे, लेकिन समाज से ताना सुनने को मिल ही जाता था। सुहास उन दिनों को याद कर कहते हैं कि तब हमारे पास कहने के लिए कुछ नहीं था, लेकिन उसका जवाब कर्म से दिया।
स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद सुहास (IAS Suhas LY) का सिलेक्शन इंजीनियरिंग के लिए हो गया। टॉप के कॉलेज एनआईटी से उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। यह सुहास के लिए एक बहुत बड़ा मुकाम हासिल करना था। यहां से सुहास का आत्मविश्वास और बढ़ गया। इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म करके उन्होंने जॉब ज्वाइन कर लिया।
तभी सुहास को एक बड़ा झटका लगा। उनके साथ हर कदम पर साथ देने वाले उनके पिता ने उनका साथ छोड़ दिया और वो स्वर्ग सिधार गए। जिस पिता ने सुहास को समाज के सामने एक काबिल इंसान बनाकर खड़ा किया था, उनका दुनिया छोड़कर जाना सुहास के लिए बहुत बड़ा सदमा था।
पिता की मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी सुहास के कंधों पर ही आ गई थी। इसी दौर में सुहास ने यूपीएससी की तैयारी करने का फैसला किया। सुहास के लिए ना तो ये फैसला लेना आसान था और ना ही इसकी तैयारी आसान थी। घर की जिम्मेदारी के कारण सुहास अपनी नौकरी छोड़कर तैयारी भी नहीं कर सकते थे। इसके लिए सुहास पार्ट टाइम पढ़ाई करने लगे। लोग पार्ट टाइम नौकरी करके फुल टाइम पढ़ाई करते हैं, यहां उल्टा हो रहा था। सुहास नौकरी तो फुल टाइम कर रहे थे, लेकिन पढ़ाई पार्ट टाइम।
मेहनत के बल पर इंजीनियरिंग करने वाले सुहास का संघर्ष यहां भी रंग ले आया और उन्होंने 2007 में यूपीएससी (UPSC) क्लियर कर लिया। सुहास एल वाई (IAS Suhas LY) को जब आईएएस के लिए चुना गया तो उन्हें उत्तरप्रदेश कैडर में जगह मिली। अधिकारी के रूप में सुहास जहां कहीं भी गए, अपने कार्यों से एक अलग ही नाम बनाते रहे।
नोएडा की कमान जब उन्हें मिली तो यहां कोरोना पूरी तरह से अपने पीक पर था। लोगों में घबराहट थी, लेकिन जब सुहास ने यहां पहुंचे तो उन्होंने कोरोना पर भी पार पा लिया। इससे पहले सुहास प्रयागराज कुंभ की कमान संभाल चुके थे। आजमगढ़ में क्राइम कंट्रोल के लिए काम कर चुके थे। वहां का अनुभव यहां भी काम आया।
इनका संघर्ष यहीं नहीं रुका, पिता ने जिन्हें बचपन से खेलने के लिए प्रेरित किया था, अब उन्होंने उसमें भी उन्होंने मेडल जीतना शुरू कर दिया। सुहास (IAS Suhas LY) ने 2016 में पहला पेशेवर बैडमिंटन टूर्नामेंट में भाग लिया था, जहां उन्होंने बीजिंग में हो रहे एशियाई चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद नंबर आया टोक्यो पैराओलंपिक का, जहां उन्हें सिल्वर मेडल मिला।
ओलंपिक से वापस आकर सुहास फिर से नोएडा के विकास कार्यों में जुट गए। आज भी सुहास (IAS Suhas LY) नौकरी के साथ-साथ खेल पर भी अपना पूरा ध्यान दे रखे हैं।
from COME IAS हिंदी https://ift.tt/3EjVpRK
एक टिप्पणी भेजें