भारत की प्रगति प्रतिबंधों में नहीं, समान अवसर देने में है  

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वैश्विक व्यापार और वाणिज्यिक संबंधों में प्रतिष्ठा, लाभ या हानि जैसे प्रमुख कारकों में से एक होती है। इसे नेटवर्क को प्रभावशाली बनाकर और फीडबैक लूप के द्वारा बढ़ाया जाता है। एक अत्यधिक प्रतिस्पर्धी वैश्विक कारोबारी माहौल में एक सामंजस्यपूर्ण समाज हमेशा से ही प्रतिष्ठित और आकर्षक माना जाता रहा है।

हाल ही में कर्नाटक राज्य ने इस प्रकार के प्रतिष्ठित वाणिज्यिक वातावरण को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है। अभी तक इस राज्य को पूरे भारत की आर्थिक जीवंतता का महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता था। लेकिन इसने अपने ही निवासियों के बीच आर्थिक भागीदारी में भेदभाव करके, एक वर्ग के लिए विकल्पों को कम कर दिया है।

घटनाक्रम –

हाल ही में कर्नाटक में एक समाचार प्रकाशित हुआ कि गैर-हिंदू व्यापारियों को मंदिर के मेलों या मंदिर परिसर में स्टॉल लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसका आधार एक पुराने कानून को बनाया गया, जिसमें हिंदू पूजा स्थलों की अचल संरचनाओं को गैर-हिंदुओं को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता है।

इस पर देश की बड़ी फार्मा कंपनी की अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ ने आपत्ति जताते हुए ट्वीट किया कि हमें इस प्रकार के सांप्रदायिक बहिष्कार की अनुमति नहीं देनी चाहिए। उनका कहना है कि अगर इंफार्मेशन टेक्नॉलॉजी और बिजनेस ट्रांसफार्मेशन (आईटीबीटी) सांप्रदायिक हो गया, तो यह हमारे वैश्विक नेतृत्व को नष्ट कर देगा।

राज्य के मुख्यमंत्री ने इस महत्वपूर्ण मामले का संज्ञान लेते हुए त्वरित समाधान का आश्वासन दिया है। यह भी सुनिश्चित करना चाहा है कि कर्नाटक जिस शांति और प्रगति के लिए जाना जाता है, वह प्रभावित न हो।

कर्नाटक में विज्ञान, नवाचार और व्यवसाय एक सक्षम पारिस्थितिकी के कारण पनपे हैं। भारत के आर्थिक विकास की भी कुंजी यही है। देश और राज्यों को हिजाब प्रतिबंध, गैर-हिंदू अतिचार आदि मामलों में नहीं उलझना चाहिए। प्रगति के लिए महत्वपूर्ण विज्ञान, गणित और साहित्य के रास्ते प्रगतिपथ पर आगे बढ़ने की राह तलाशनी चाहिए।

समाचार पत्रों पर आधारित। 2 अप्रैल, 2022

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